काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं
काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता
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ग़ालिब
आप के बा'द हर घड़ी हम ने
वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था
दिखाई देते हैं धुँद में जैसे साए कोई
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किताबें
हवा के सींग न पकड़ो खदेड़ देती है
मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता
जब भी ये दिल उदास होता है