कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है
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रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
एक परवाज़ दिखाई दी है
एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे
किनारे पर कोई आया था
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
स्केच
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
समय
शहतूत की शाख़ पे
इमेजेज़
आप के बा'द हर घड़ी हम ने