जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है
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ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर
धूप लगे आकाश पे जब
बीते रिश्ते तलाश करती है
सब्र हर बार इख़्तियार किया
ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा
बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव
सीलन
हवा के सींग न पकड़ो खदेड़ देती है
आप ने औरों से कहा सब कुछ
आइना देख कर तसल्ली हुई
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
राख को भी कुरेद कर देखो