हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
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सिद्धार्थ की एक रात
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
इमेजेज़
एक परवाज़ दिखाई दी है
भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में
आदतन तुम ने कर दिए वादे
हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
अपने साए से चौंक जाते हैं
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
देखो आहिस्ता चलो