गो बरसती नहीं सदा आँखें
अब्र तो बारा मास होता है
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दिखाई देते हैं धुँद में जैसे साए कोई
ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं
हम तो कितनों को मह-जबीं कहते
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
वक़्त-1
आप के बा'द हर घड़ी हम ने
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
एक और रात
जब भी आँखों में अश्क भर आए
मैं काएनात में