एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की
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कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
शफ़क़
राख को भी कुरेद कर देखो
मकान
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
शाम से आज साँस भारी है
शाम से आँख में नमी सी है
फूलों की तरह लब खोल कभी
आदतन तुम ने कर दिए वादे
आँखों के पोछने से लगा आग का पता
बर्फ़ पिघलेगी