दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसाँ उतारता है कोई
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गिरहें
लैंडस्केप
खंडर
दस्तक
विरासत
आँखों के पोछने से लगा आग का पता
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
राख को भी कुरेद कर देखो
अख़बार
बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव
ज़िक्र आए तो मिरे लब से दुआएँ निकलें