भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में
उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं
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लिबास
नज़्म
काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं
बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद
गिरहें
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं
मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता
रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
डाइरी