आँखों के पोछने से लगा आग का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
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कोई अटका हुआ है पल शायद
हम तो कितनों को मह-जबीं कहते
पोम्पिये
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
आप ने औरों से कहा सब कुछ
शाम से आज साँस भारी है
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आदत
वक़्त-1
दस्तक