तख़्लीक़
तुम्हारे होंटों की ठंडी ठंडी तिलावतें
झुक के मेरी आँखों को छू रही हैं
मैं अपने होंटों से चुन रहा हूँ तुम्हारी साँसों की आयतों को
कि जिस्म के इस हसीन काबे पे रूह सज्दे बिछा रही है
वो एक लम्हा बड़ा मुक़द्दस था जिस में तुम जन्म ले रही थीं
वो एक लम्हा बड़ा मुक़द्दस था जिस में मैं जन्म ले रहा था
ये एक लम्हा बड़ा मुक़द्दस है जिस को हम जन्म दे रहे हैं
ख़ुदा ने ऐसे ही एक लम्हे में सोचा होगा
हयात तख़्लीक़ कर के लम्हे के लम्स को जावेदाँ भी कर दे!
(2241) Peoples Rate This