तआक़ुब

सुब्ह से शाम हुई और हिरन मुझ को छलावे देता

सारे जंगल में परेशान किए घूम रहा है अब तक

उस की गर्दन के बहुत पास से गुज़रे हैं कई तीर मिरे

वो भी अब उतना ही हुश्यार है जितना मैं हूँ

इक झलक दे के जो गुम होता है वो पेड़ों में

मैं वहाँ पहुँचूँ तो टीले पे कभी चश्मे के उस पार नज़र आता है

वो नज़र रखता है मुझ पर

मैं उसे आँख से ओझल नहीं होने देता

कौन दौड़ाए हुए है किस को

कौन अब किस का शिकारी है पता ही नहीं चलता

सुब्ह उतरा था मैं जंगल में

तो सोचा था कि उस शोख़ हिरन को

नेज़े की नोक पे परचम की तरह तान के मैं शहर में दाख़िल हूँगा

दिन मगर ढलने लगा है

दिल में इक ख़ौफ़ सा अब बैठ रहा है

कि बिल-आख़िर ये हिरन ही

मुझे सींगों पर उठाए हुए इक ग़ार में दाख़िल होगा

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Taaqub In Hindi By Famous Poet Gulzar. Taaqub is written by Gulzar. Complete Poem Taaqub in Hindi by Gulzar. Download free Taaqub Poem for Youth in PDF. Taaqub is a Poem on Inspiration for young students. Share Taaqub with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.