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समय - गुलज़ार कविता - Darsaal

समय

मैं खंडरों की ज़मीं पे कब से भटक रहा हूँ

क़दीम रातों की टूटी क़ब्रों के मेले कतबे

दिनों की टूटी हुई सलीबें गिरी पड़ी हैं

शफ़क़ की ठंडी चिताओं से राख उड़ रही है

जगह जगह गुर्ज़ वक़्त के चूर हो गए हैं

जगह जगह ढेर हो गई हैं अज़ीम सदियाँ

मैं खंडरों की ज़मीं पे कब से भटक रहा हूँ

यहीं मुक़द्दस हथेलियों से गिरी हैं मेहंदी

शम्ओं की टूटी हुई लवें ज़ंग खा गई हैं

यहीं पे माथों की रौशनी जल के बुझ गई हैं

सपाट चेहरों के ख़ाली पन्ने खुले हुए हैं

हर्फ़ आँखों के मिट चुके हैं

मैं खंडरों की ज़मीं पे कब से भटक रहा हूँ

यहीं कहीं ज़िंदगी के मअ'नी गिरे हैं और गिर के खो गए हैं!

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Samay In Hindi By Famous Poet Gulzar. Samay is written by Gulzar. Complete Poem Samay in Hindi by Gulzar. Download free Samay Poem for Youth in PDF. Samay is a Poem on Inspiration for young students. Share Samay with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.