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किनारे पर कोई आया था - गुलज़ार कविता - Darsaal

किनारे पर कोई आया था

किनारे पर कोई आया था जिस का ख़ाली बजरा डोलता रहता है पानी पर

कोई उतरा था बजरे से

वो माँझी होगा जिस के पाँव के मद्धम निशाँ अब तक दिखाई दे रहे हैं गीले साहिल पर

गया था कहकशाँ के पार ये कह कर

अभी आता हूँ ठहरो उस किनारे पर ज़रा मैं देख लूँ क्या है

ये बजरा डोलता रहता है इस ठहरे हुए दरिया के पानी पर

वो लौटेगा या मैं जाऊँ

मुझे उस पार जाना है

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