Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_f2aa41172b9be0a16004b685502efbee, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हिरासत - गुलज़ार कविता - Darsaal

हिरासत

धुँदलाई हुई शाम थी

अलसाई हुई सी

और वक़्त भी बासी था मैं जब शहर में आया

हर शाख़ से लिपटे हुए सन्नाटे खड़े थे

दीवारों से चिपकी हुई ख़ामोशी पड़ी थी

राहों में नफ़्स कोई न परछाईं न साया

उन गलियों में कूचों में, अंधेरा न उजाला

दरवाज़ों के पट बंद थे, ख़ाली थे दरीचे

बस वक़्त के कुछ बासी से टुकड़े थे, पड़े थे

मैं घूमता फिरता था सर-ए-शहर अकेला

दरवाज़ों पे आवाज़ लगाता था, कोई है?

हर मोड़ पे रुक जाता था शायद कोई आए

लेकिन कोई आहट, कोई साया भी न आया

ये शहर अचानक ही मगर जाग पड़ा है

आवाज़ें हिरासत में लिए मुझ को खड़ी हैं

आवाज़ों के इस शहर में मैं क़ैद पड़ा हूँ

(2183) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hirasat In Hindi By Famous Poet Gulzar. Hirasat is written by Gulzar. Complete Poem Hirasat in Hindi by Gulzar. Download free Hirasat Poem for Youth in PDF. Hirasat is a Poem on Inspiration for young students. Share Hirasat with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.