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ग़ालिब - गुलज़ार कविता - Darsaal

ग़ालिब

बल्ली-माराँ के मोहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियाँ

सामने टाल के नुक्कड़ पे बेड़ों के क़सीदे

चंद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा से कुछ टाट के पर्दे

और धुंद्लाई हुई शाम के बे-नूर अँधेरे साए

ऐसे दीवारों से मुँह जोड़ कर चलते हैं यहाँ

चूड़ी-वालान कटरे की बड़ी-बी जैसे

अपनी बुझती हुई आँखों से दरवाज़े टटोले

इस बे-नूर अँधेरी सी गली-क़ासिम से

एक तरतीब चराग़ों की शुरूअ' होती है

एक क़ुर्आन-ए-सुख़न का भी वरक़ खुलता है

असदुल्लाह-ख़ाँ-'ग़ालिब' का पता मिलता है

(2002) Peoples Rate This

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Ghaalib In Hindi By Famous Poet Gulzar. Ghaalib is written by Gulzar. Complete Poem Ghaalib in Hindi by Gulzar. Download free Ghaalib Poem for Youth in PDF. Ghaalib is a Poem on Inspiration for young students. Share Ghaalib with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.