फ़ज़ा

फ़ज़ा ये बूढ़ी लगती है

पुराना लगता है मकाँ

समुंदरों के पानियों से नील अब उतर चुका

हवा के झोंके छूते हैं तो खुरदुरे से लगते हैं

बुझे हुए बहुत से टुकड़े आफ़्ताब के

जो गिरते हैं ज़मीन की तरफ़ तो ऐसा लगता है

कि दाँत गिरने लग गए हैं बुड्ढे आसमान के

फ़ज़ा ये बूढ़ी लगती है

पुराना लगता है मकाँ

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Faza In Hindi By Famous Poet Gulzar. Faza is written by Gulzar. Complete Poem Faza in Hindi by Gulzar. Download free Faza Poem for Youth in PDF. Faza is a Poem on Inspiration for young students. Share Faza with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.