एक ख़्वाब

एक ही ख़्वाब कई बार यूँही देखा मैं ने

तू ने साड़ी में उड़स ली हैं मिरी चाबियाँ घर की

और चली आई है बस यूँही मिरा हाथ पकड़ कर

घर की हर चीज़ सँभाले हुए अपनाए हुए तू

तू मिरे पास मिरे घर पे मिरे साथ है 'सोनूँ'

मेज़ पर फूल सजाते हुए देखा है कई बार

और बिस्तर से कई बार जगाया भी है तुझ को

चलते-फिरते तिरे क़दमों की वो आहट भी सुनी है

गुनगुनाती हुई निकली है ग़ुस्ल-ख़ाने से जब भी

अपने भीगे हुए बालों से टपकता हुआ पानी

मेरे चेहरे पर छिड़क देती है तू 'सोनूँ' की बच्ची

फ़र्श पर लेट गई है तू कभी रूठ के मुझ से

और कभी फ़र्श से मुझ को भी उठाया है मना कर

ताश के पत्तों पे लड़ती है कभी खेल में मुझ से

और कभी लड़ती भी ऐसे है कि बस खेल रही है

और आग़ोश में नन्हे को

और मालूम है जब देखा था ये ख़्वाब तुम्हारा

अपने बिस्तर पे मैं उस वक़्त पड़ा जाग रहा था

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Ek KHwab In Hindi By Famous Poet Gulzar. Ek KHwab is written by Gulzar. Complete Poem Ek KHwab in Hindi by Gulzar. Download free Ek KHwab Poem for Youth in PDF. Ek KHwab is a Poem on Inspiration for young students. Share Ek KHwab with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.