वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था

वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था

हवाओं का रुख़ दिखा रहा था

बताऊँ कैसे वो बहता दरिया

जब आ रहा था तो जा रहा था

कुछ और भी हो गया नुमायाँ

मैं अपना लिक्खा मिटा रहा था

धुआँ धुआँ हो गई थीं आँखें

चराग़ को जब बुझा रहा था

मुंडेर से झुक के चाँद कल भी

पड़ोसियों को जगा रहा था

उसी का ईमाँ बदल गया है

कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था

वो एक दिन एक अजनबी को

मिरी कहानी सुना रहा था

वो उम्र कम कर रहा था मेरी

मैं साल अपने बढ़ा रहा था

ख़ुदा की शायद रज़ा हो इस में

तुम्हारा जो फ़ैसला रहा था

(2573) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Wo KHat Ke Purze UDa Raha Tha In Hindi By Famous Poet Gulzar. Wo KHat Ke Purze UDa Raha Tha is written by Gulzar. Complete Poem Wo KHat Ke Purze UDa Raha Tha in Hindi by Gulzar. Download free Wo KHat Ke Purze UDa Raha Tha Poem for Youth in PDF. Wo KHat Ke Purze UDa Raha Tha is a Poem on Inspiration for young students. Share Wo KHat Ke Purze UDa Raha Tha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.