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फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की - गुलज़ार कविता - Darsaal

फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की

फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की

इक ताइर का दिल रखने की कोशिश की

कल फिर चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में

रात ने मेरी जाँ लेने की कोशिश की

कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया

जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की

कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ

उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की

एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है

मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की

एक सितारा जल्दी जल्दी डूब गया

मैं ने जब तारे गिनने की कोशिश की

नाम मिरा था और पता अपने घर का

उस ने मुझ को ख़त लिखने की कोशिश की

एक धुएँ का मर्ग़ोला सा निकला है

मिट्टी में जब दिल बोने की कोशिश की

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