पुराने पेड़ को मौसम नई क़बाएँ दे
पुराने पेड़ को मौसम नई क़बाएँ दे
गुलों में दफ़्न करे रेशमी रिदाएँ दे
शब-ए-विसाल भी मंज़िल है मेरे ज़ौक़-ए-सफ़र
मुझे विसाल से आगे की इंतिहाई दे
मैं एक दाना-ए-पामाल था मगर ऐ ख़ाक
अब उग रहा हूँ मिरे तन को भी क़बाएँ दे
फ़सील-ए-शहर-ए-सितम सुर्ख़ होती जाती है
अमीर-ए-शहर हमें शौक़ से सज़ाएँ दे
करें मुशाहिदा गुलज़ार ऐसी आँखों से
नज़र हटाएँ तो मंज़र हमें सदाएँ दे
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