Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_a335c0390e5bc1a40e905487ec7ebe84, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कौन सी मंज़िल है जो बे-ख़्वाब आँखों में नहीं - गुलज़ार वफ़ा चौदरी कविता - Darsaal

कौन सी मंज़िल है जो बे-ख़्वाब आँखों में नहीं

कौन सी मंज़िल है जो बे-ख़्वाब आँखों में नहीं

एक सूरज ढूँढता हूँ जो कि सपनों में नहीं

देखता रहता हूँ मिटते शहर के नक़्श-ओ-निगार

आँख में वो सूरतें भी हैं कि गलियों में नहीं

मौसमों का रुख़ उधर को है हवाओं का इधर

जंगलों में बात कोई है कि शहरों में नहीं

पीली पीली तितलियाँ हैं और महरूमी का रक़्स

कौन सा वो ज़ाइक़ा होगा कि फूलों में नहीं

यूँ तो हर जानिब खड़े हैं ये क़तार-अंदर-क़तार

एक ठंडक है कि इन पेड़ों के सायों में नहीं

चाँद तारों की ज़ियाएँ कहकशाओं के हुजूम

कौन सा वो आसमाँ है जो ज़मीनों में नहीं

(791) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kaun Si Manzil Hai Jo Be-KHwab Aankhon Mein Nahin In Hindi By Famous Poet Gulzar Vafa Chaudari. Kaun Si Manzil Hai Jo Be-KHwab Aankhon Mein Nahin is written by Gulzar Vafa Chaudari. Complete Poem Kaun Si Manzil Hai Jo Be-KHwab Aankhon Mein Nahin in Hindi by Gulzar Vafa Chaudari. Download free Kaun Si Manzil Hai Jo Be-KHwab Aankhon Mein Nahin Poem for Youth in PDF. Kaun Si Manzil Hai Jo Be-KHwab Aankhon Mein Nahin is a Poem on Inspiration for young students. Share Kaun Si Manzil Hai Jo Be-KHwab Aankhon Mein Nahin with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.