धूल न बनना आईनों पर बार न होना
धूल न बनना आईनों पर बार न होना
बीनाई के रस्ते की दीवार न होना
शहरों का विर्सा हैं जलते-बुझते मंज़र
रहना लेकिन हम-रंग-ए-बाज़ार न होना
ज़हर-हवाएँ पुर्वा रंगों में चलती हैं
सादा कलियो उन के लिए गुलनार न होना
मिलने का खिलने का मौसम दूर नहीं है
नख़्ल-ए-मातम ऐ मेरे अश्जार न होना
मैं ने चमन की ख़ातिर कौन से दुख झेले हैं
शाख़-ए-बहाराँ मेरे लिए गुल-बार न होना
(797) Peoples Rate This