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उस सितमगर की मेहरबानी से - गुलज़ार देहलवी कविता - Darsaal

उस सितमगर की मेहरबानी से

उस सितमगर की मेहरबानी से

दिल उलझता है ज़िंदगानी से

ख़ाक से कितनी सूरतें उभरीं

धुल गए नक़्श कितने पानी से

हम से पूछो तो ज़ुल्म बेहतर है

इन हसीनों की मेहरबानी से

और भी क्या क़यामत आएगी

पूछना है तिरी जवानी से

दिल सुलगता है अश्क बहते हैं

आग बुझती नहीं है पानी से

हसरत-ए-उम्र-ए-जावेदाँ ले कर

जा रहे हैं सरा-ए-फ़ानी से

हाए क्या दौर-ए-ज़िंदगी गुज़रा

वाक़िए हो गए कहानी से

कितनी ख़ुश-फ़हमियों के बुत तोड़े

तू ने गुलज़ार ख़ुश-बयानी से

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