हम शाद हों क्या जब तक आज़ार सलामत है

हम शाद हों क्या जब तक आज़ार सलामत है

सर फोड़ चुके फिर भी दीवार सलामत है

आया तिरे होंटों पर एलान-ए-जुनूँ क्यूँ कर

जब तेरे गरेबाँ का हर तार सलामत है

अंदाज़ दिखाए हैं क्या शोख़ी-ए-तिफ़्लाँ ने

इस शहर में अब किस की दीवार सलामत है

लुटता है तो लुट जाए सुख-चैन फ़क़ीरों का

क्या फ़िक्र तुझे तेरा पिंदार सलामत है

इक संग के हटने से ख़ुश-फ़हम न हो इतना

मत भूल कि रस्ते में कोहसार सलामत है

'गुलज़ार' हमें देखो कश्ती को डुबो कर भी

किस फ़ख़्र से कहते हैं पतवार सलामत है

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