Ghazals of Gulzar Bukhari
नाम | गुलज़ार बुख़ारी |
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अंग्रेज़ी नाम | Gulzar Bukhari |
जन्म की तारीख | 1949 |
ज़ाहिर मुसाफ़िरों का हुनर हो नहीं रहा
ज़ाब्ते और ही मिस्दाक़ पे रक्खे हुए हैं
वफ़ा की तश्हीर करने वाला फ़रेब-गर है सितम तो ये है
उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला
तिरी उमीदों का साथ देगी इनायत-ए-बर्ग-ओ-बार कब तक
तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है
मोहब्बत के सिवा हर्फ़-ओ-बयाँ से कुछ नहीं होता
कितनी सदियाँ ना-रसी की इंतिहा में खो गईं
हम शाद हों क्या जब तक आज़ार सलामत है
दिए से यूँ दिया जलता रहेगा
अक्स-ए-रौशन तिरा आईना-ए-जाँ में रक्खा
आँधी में बिसात उलट गई है
आईने का मुँह भी हैरत से खुला रह जाएगा