Love Poetry of Gulam Yahya Huzur Azimabadi
नाम | ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Gulam Yahya Huzur Azimabadi |
शब-ए-हिज्र में एक दिन देखना
करूँ क़त्-ए-उल्फ़त बुतों से व-लेकिन
इश्क़ ने सामने होते ही जलाया दिल को
इश्क़ में ख़ूब नीं बहुत रोना
इश्क़ में दर्द से है हुर्मत-ए-दिल
अदा को तिरी मेरा जी जानता है
ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का
उस शोख़ से क्या कीजिए इज़्हार-ए-तमन्ना
उम्र गई उल्फ़त-ए-ज़र जी से इलाही न गई
शजर बाग़-ए-जहाँ का था जहाँ तक सब समर लाया
मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से
महज़ूँ न हो 'हुज़ूर' अब आता है यार अपना
क्या रफ़ू करने लगा है जा भी नादाँ यक तरफ़
जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे
जहाँ में कहाँ बाहम उल्फ़त रही है
जब से गया है वो मिरा ईमान-ए-ज़िंदगी
गुल-एज़ार और भी यूँ रखते हैं रंग और नमक
बा'द-ए-मकीं मकाँ का गर बाम रहा तो क्या हुआ
आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज
आबरू उल्फ़त में अगर चाहिए