तुझ बिन इक दल हो पास रहता है
वो भी अक्सर उदास रहता है
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क्या रफ़ू करने लगा है जा भी नादाँ यक तरफ़
बा'द-ए-मकीं मकाँ का गर बाम रहा तो क्या हुआ
देखना ज़ोर ही गाँठा है दिल-ए-यार से दिल
हैं शैख़ ओ बरहमन तस्बीह और ज़ुन्नार के बंदे
ऐ बहर न तू इतना उमँड चल मिरे आगे
इश्क़ में दर्द से है हुर्मत-ए-दिल
ग़ैर वफ़ा में पुख़्ता हैं यूँ ही सही प मुझ सा भी
ग़ैर आए पीछे पा गए मुजरे का बार पहले
जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे
अबस घर से अपने निकाले है तू
आबरू उल्फ़त में अगर चाहिए
शजर बाग़-ए-जहाँ का था जहाँ तक सब समर लाया