अदा को तिरी मेरा जी जानता है
हरीफ़ अपना हर कोई पहचानता है
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हर शजर के तईं होता है समर से पैवंद
गुल-एज़ार और भी यूँ रखते हैं रंग और नमक
कभी हाथ भी आएगा यार सच कह
इश्क़ ने सामने होते ही जलाया दिल को
क्या रफ़ू करने लगा है जा भी नादाँ यक तरफ़
यूँ तो दिल हर कदाम रखता है
अश्क आँखों के अंदर न रहा है न रहेगा
मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से
जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे
जो जी चाहे है देखूँ माह-ए-नौ कहता है दिल मेरा
आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज