आँखों से इसी तरह अगर सैल रवाँ है
दुनिया में कोई घर न रहा है न रहेगा
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देखना ज़ोर ही गाँठा है दिल-ए-यार से दिल
मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से
है अफ़्सोस ऐ उम्र जाने का तेरे
जब से गया है वो मिरा ईमान-ए-ज़िंदगी
इश्क़ में ख़ूब नीं बहुत रोना
करूँ क़त्-ए-उल्फ़त बुतों से व-लेकिन
बहार इस धूम से आई गई उम्मीद जीने की
जहाँ में कहाँ बाहम उल्फ़त रही है
ग़ैर आए पीछे पा गए मुजरे का बार पहले
हैं शैख़ ओ बरहमन तस्बीह और ज़ुन्नार के बंदे
हर शजर के तईं होता है समर से पैवंद
कभी हाथ भी आएगा यार सच कह