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ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का - ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी कविता - Darsaal

ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का

ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का

देखा तो सिर्फ़ नाम है बैत-उल-हराम का

मा'नी में लफ़्ज़ एक है ये रब्ब-ओ-राम का

हासिल ये है कि है वही हासिल कलाम का

देखा तो सब हक़ीक़त-ओ-मा'नी में एक हैं

सूरत में गरचे फ़र्क़ है आपस में नाम का

उस ला-मकाँ का कोई मुअय्यन नहीं मकाँ

गर है तो दिल ठिकाना है उस के मक़ाम का

मसरूर तेरी मय से इक आलम है साक़िया

उम्मीद-वार मैं भी हूँ दो एक जाम का

आग़ाज़-ए-इश्क़ में गया दिल हाथ से मिरे

अंजाम क्या हो देखिए अब मेरे काम का

लेते हैं चूर करने को ही संग-दिल हुज़ूर

किया है वगर्ना शीशा-ए-दिल उन के काम का

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