टुक देखियो ये अबरू-ए-ख़मदार वही है

टुक देखियो ये अबरू-ए-ख़मदार वही है

कुश्ता हूँ मैं जिस का सो ये तरवार वही है

मंसूर सा कोई न हुआ ख़ल्क़ जहाँ में

इस ममलकत-ए-फ़क़्र का सरदार वही है

पूछा जो मैं उस से कि 'हुज़ूर' ऐसा कोई और

गाहक भी है या एक ख़रीदार वही है

इतनी जो अज़िय्यत उसे देता है तू हर दम

क्या क़ाबिल-ए-जौर-ओ-सितम ऐ यार वही है

कहने लगा हम लोगों का मशरब तो यही है

जो कोई बहुत चाहे गुनहगार वही है

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