जहाँ में कहाँ बाहम उल्फ़त रही है
जहाँ में कहाँ बाहम उल्फ़त रही है
मगर सिर्फ़ साहिब-सलामत रही है
है अफ़्सोस ऐ उम्र जाने का तेरे
कि तू मेरे पास एक मुद्दत रही है
ये तूफ़ान-ए-अश्क इस में आँखों की कश्ती
तअ'ज्जुब है क्यूँ कर सलामत रही है
अगरचे तिरी याद में ख़ुश हूँ लेकिन
इन आँखों से देखूँ ये हसरत रही है
मत उम्मीद बोसे की रख दिलबरों से
'हुज़ूर' अब किसे इतनी हिम्मत रही है
(658) Peoples Rate This