Ghazals of Gulam Yahya Huzur Azimabadi
नाम | ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Gulam Yahya Huzur Azimabadi |
यूँ तो दिल हर कदाम रखता है
ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का
उस शोख़ से क्या कीजिए इज़्हार-ए-तमन्ना
उम्र गई उल्फ़त-ए-ज़र जी से इलाही न गई
टुक देखियो ये अबरू-ए-ख़मदार वही है
शजर बाग़-ए-जहाँ का था जहाँ तक सब समर लाया
मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से
महज़ूँ न हो 'हुज़ूर' अब आता है यार अपना
क्या रफ़ू करने लगा है जा भी नादाँ यक तरफ़
जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे
जहाँ में कहाँ बाहम उल्फ़त रही है
जब से गया है वो मिरा ईमान-ए-ज़िंदगी
हर शजर के तईं होता है समर से पैवंद
गुल-एज़ार और भी यूँ रखते हैं रंग और नमक
ग़ैर आए पीछे पा गए मुजरे का बार पहले
दिल ब-अज़-काबा है याराँ जुब्बा-साई चाहिए
बा'द-ए-मकीं मकाँ का गर बाम रहा तो क्या हुआ
अश्क आँखों के अंदर न रहा है न रहेगा
आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज
आइना है ये जहाँ इस में जमाल अपना है
आबरू उल्फ़त में अगर चाहिए