आईना-ख़ाने से दामन को बचा कर गुज़रो
आईना टूटा तो रेज़ों में बिखर जाओगे
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कितने दरिया इस नगर से बह गए
कुछ तुम्हारी अंजुमन में ऐसे दीवाने भी थे
अब के बाज़ार में ये तुर्फ़ा तमाशा देखा
मिले भी दोस्त तो इस तर्ज़-ए-बे-दिली से मिले
शहर-ए-जाँ की फ़सीलों से बाहर
तू अंग अंग में ख़ुश्बू सी बन गया होगा
तू सरहद-ए-ख़याल से आगे गुज़र गया
मौज-ए-सरसर की तरह दिल से गुज़र जाओगे
हमारा उन का तअ'ल्लुक़ जो रस्म-ओ-राह का था