शहर-ए-जाँ की फ़सीलों से बाहर

मुझे शहर-ए-जाँ में कहाँ तुम मिलोगे

यहाँ तो ज़मिस्ताँ की यख़-बस्तगी है

दरों और दरीचों

घरों की फ़सीलों पर काई जमी है

हवा अपने हाथों में ख़ंजर उठाए

गली में खड़ी दस्तकें दे रही है

मैं सहमा हुआ ये सदा सुन रहा हूँ

मिरी हड्डियों के निहाँ मा'बदों में

कहीं आग का इक शरारा नहीं है

चराग़ों की सारी लवें बुझ गई हैं

अँधेरे का कोई किनारा नहीं है

मगर हम मिलेंगे

हवाओं में जब ताज़ा रुत के शगूफ़े खिलेंगे

परिंदों की चहकार

पत्तों के झुरमुट से बाहर निकल कर

नए मौसमों का स्वागत करेगी

तो हम तुम मिलेंगे

मगर शहर-ए-जाँ की फ़सीलों से बाहर मिलेंगे

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Shahr-e-jaan Ki Fasilon Se Bahar In Hindi By Famous Poet Gulam Jilani Asghar. Shahr-e-jaan Ki Fasilon Se Bahar is written by Gulam Jilani Asghar. Complete Poem Shahr-e-jaan Ki Fasilon Se Bahar in Hindi by Gulam Jilani Asghar. Download free Shahr-e-jaan Ki Fasilon Se Bahar Poem for Youth in PDF. Shahr-e-jaan Ki Fasilon Se Bahar is a Poem on Inspiration for young students. Share Shahr-e-jaan Ki Fasilon Se Bahar with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.