मौज-ए-सरसर की तरह दिल से गुज़र जाओगे

मौज-ए-सरसर की तरह दिल से गुज़र जाओगे

किस को मालूम था तुम दिल में उतर जाओगे

चार-सू वक़्त की गर्दिश की फ़सील-ए-शब है

बच के इस गर्दिश-ए-दौराँ से किधर जाओगे

आईना-ख़ाने से दामन को बचा कर गुज़रो

आईना टूटा तो रेज़ों में बिखर जाओगे

इक ज़रा और क़रीब-ए-रग-ए-जाँ आओ तो

मेरे ख़ूँ-नाब में तुम ढल के सँवर जाओगे

देखो वो चाँद सिसकता है उफ़ुक़ की हद पर

तुम भी इस चाँद की मानिंद गुज़र जाओगे

इस भरी बज़्म से हंस-बोल के रुख़्सत हो लो

कल जो उट्ठोगे तो बा-दीदा-ए-तर जाओगे

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