अब के बाज़ार में ये तुर्फ़ा तमाशा देखा

अब के बाज़ार में ये तुर्फ़ा तमाशा देखा

बेचने निकले तो यूसुफ़ का ख़रीदार न था

दोस्तो रस्म-ए-मोहब्बत पे ये क्या बैत गई

शहर-ए-याराँ में कोई शख़्स सर-ए-दार न था

और भी लोग थे तौफ़ीक़-ए-वफ़ा रखते थे

एक मैं ही तो तिरे ग़म का सज़ा-वार न था

दिल के कहने पे लगा ली है वफ़ा की तोहमत

वर्ना जीना तो मुझे बाइस-ए-आज़ार न था

मस्लहत-केश बने बैठे हैं सब अहल-ए-वफ़ा

इतना रुस्वा तो कभी इश्क़ का पिंदार न था

तुझ को चाहा तो किसी और को चाहा न गया

मैं तो फ़नकार था 'ग़ालिब' का तरफ़-दार न था

(941) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ab Ke Bazar Mein Ye Turfa Tamasha Dekha In Hindi By Famous Poet Gulam Jilani Asghar. Ab Ke Bazar Mein Ye Turfa Tamasha Dekha is written by Gulam Jilani Asghar. Complete Poem Ab Ke Bazar Mein Ye Turfa Tamasha Dekha in Hindi by Gulam Jilani Asghar. Download free Ab Ke Bazar Mein Ye Turfa Tamasha Dekha Poem for Youth in PDF. Ab Ke Bazar Mein Ye Turfa Tamasha Dekha is a Poem on Inspiration for young students. Share Ab Ke Bazar Mein Ye Turfa Tamasha Dekha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.