Sad Poetry of Guhar Khairabadi
नाम | गुहर खैराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Guhar Khairabadi |
वरक़ वरक़ जो ज़माने के शाहकार में था
वक़ार दे के कभी बे-वक़ार मत करना
तोड़ कर शीशा-ए-दिल को मिरे बर्बाद न कर
तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा
मैं ग़र्क़ वहाँ प्यास के पैकर की तरह था
मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा
जिस तरफ़ भी देखिए साया नहीं
ग़म नहीं जो लुट गए हम आ के मंज़िल के क़रीब
दिल के दामन में जो सरमाया-ए-अफ़्कार न था
दर्द-ए-दिल के साथ क्या मेरे मसीहा कर दिया
चराग़ से कभी तारों से रौशनी माँगे
बे-ख़बर कैसे हो रहे हो तुम