तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा
तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा
गुज़रूँगा मैं तो नक़्श-ए-वफ़ा छोड़ जाऊँगा
दुनिया के लोग सुनते रहेंगे तमाम उम्र
लफ़्ज़ों में अपने दिल की सदा छोड़ जाऊँगा
अपने लहू से फूल खिला कर हयात के
हर सम्त ख़ुशबुओं की फ़ज़ा छोड़ जाऊँगा
रखेंगी याद हुस्न की रानाइयाँ मुझे
वो गुलिस्ताँ में रंग नया छोड़ जाऊँगा
हर इक क़दम बनेगी जो तहज़ीब की मिसाल
वो ज़िंदगी की तर्ज़-ए-अदा छोड़ जाऊँगा
सींचेगा फिर चमन में उसे मेरे बा'द कौन
जिस पेड़ को यहाँ मैं हरा छोड़ जाऊँगा
ये सोचता हूँ जब कभी होगा मिरा सफ़र
क्या क्या मैं ले के जाऊँगा क्या छोड़ जाऊँगा
तर्के में कुछ भी छोड़ूँ न छोड़ूँ यहाँ मगर
बच्चों के हक़ में अपनी दुआ छोड़ जाऊँगा
पहुँचेगा फ़ैज़ जिस से ज़माने को ऐ 'गुहर'
इल्म-ओ-हुनर की मैं वो घटा छोड़ जाऊँगा
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