चराग़ से कभी तारों से रौशनी माँगे

चराग़ से कभी तारों से रौशनी माँगे

अँधेरी रात भी किस किस से ज़िंदगी माँगे

जलाने वाले जलाते हैं नफ़रतों के चराग़

फ़ज़ा-ए-वक़्त मोहब्बत की रौशनी माँगे

वो ना-शनास-ए-हक़ीक़त है इस ज़माना में

वफ़ा को भीक समझ कर गली गली माँगे

निशात-ओ-रंज मुक़द्दर की बात होती है

किसी से ग़म न किसी से कोई ख़ुशी माँगे

हर एक शख़्स में अंदाज़-ए-कज-अदाई है

मगर ये दिल है कि रह रह के दोस्ती माँगे

जहाँ सुरों की हक़ीक़त न हो वहाँ पे 'गुहर'

जो कोई माँगे तो क्या ताज-ए-ख़ुसरवी माँगे

(865) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Charagh Se Kabhi Taron Se Raushni Mange In Hindi By Famous Poet Guhar Khairabadi. Charagh Se Kabhi Taron Se Raushni Mange is written by Guhar Khairabadi. Complete Poem Charagh Se Kabhi Taron Se Raushni Mange in Hindi by Guhar Khairabadi. Download free Charagh Se Kabhi Taron Se Raushni Mange Poem for Youth in PDF. Charagh Se Kabhi Taron Se Raushni Mange is a Poem on Inspiration for young students. Share Charagh Se Kabhi Taron Se Raushni Mange with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.