नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
क्या करूँ आलम-ए-जवानी है
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नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये
लब-ए-जाँ-बख़्श पे दम अपना फ़ना होता है
इत्र मिट्टी का लगाया चाहिए पोशाक में
क्या हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त
वो तिफ़्ल-ए-नुसैरी आए शायद
अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है
भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक
तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे
तकल्लुम जो कोई करता है फ़ानी
दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर
नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत
किस नाज़ से वाह हम को मारा