ख़ून मिरा कर के लगाना न हिना मेरे ब'अद
दस्त रंगीं न हों अंगुश्त-नुमा मेरे ब'अद
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हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है
किस नाज़ से वाह हम को मारा
अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना
वो तिफ़्ल-ए-नुसैरी आए शायद
जामा-ए-सुर्ख़ तिरा देख के गुल
हाथ से कुछ न तिरे ऐ मह-ए-कनआँ होगा
मुँह ढाँप के मैं जो रो रहा हूँ
नक़्श-ए-पा पंच-शाख़ा क़बर पर रौशन करो
ठुकरा के चले जबीं को मेरी
हर गाम पे ही साए से इक मिस्रा-ए-मौज़ूँ
नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है