दिमाग़ और ही पाती हैं इन हसीनों में
ये माह वो हैं नज़र आएँ जो महीनों में
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(751) Peoples Rate This
नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
इत्र मिट्टी का लगाया चाहिए पोशाक में
दर पे नालाँ जो हूँ तो कहता है
नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये
सख़्त है हैरत हमें जो ज़ेर-ए-अबरू ख़ाल है
ऐ जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ न आई होती
ठुकरा के चले जबीं को मेरी
मिस्ल-ए-तिफ़्लाँ वहशियों से ज़िद है चर्ख़-ए-पीर को
किस क़दर मुझ को ना-तवानी है
नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत
क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में
लब-ए-जाँ-बख़्श पे दम अपना फ़ना होता है