अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना
दरिया की तरह आप हैं अपने कनार में
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न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा
ये इक तेरा जल्वा सनम चार सू है
हाथ से कुछ न तिरे ऐ मह-ए-कनआँ होगा
नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत
ख़ून मिरा कर के लगाना न हिना मेरे ब'अद
ठुकरा के चले जबीं को मेरी
किस नाज़ से वाह हम को मारा
उस को मुझ से रुठा दिया किस ने
उस को ग़फ़लत-पेशा कह आते हैं हम
ऐ जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ न आई होती
जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है
हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है