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क्या हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त - गोया फ़क़ीर मोहम्मद कविता - Darsaal

क्या हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त

क्या हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त

हैं जो शबनम से अश्क-बार दरख़्त

देखें गर सर्व-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त

ख़ाक पर लोटें साया-दार दरख़्त

अश्क-बार उन पे हैं जो मुर्ग़-ए-चमन

पहने हैं मोतियों का हार दरख़्त

सर-कशी की है क्या तिरे क़द से

काटे जाते हैं बे-शुमार दरख़्त

क्या तिरे क़द से दूँ मिसाल उसे

कि है अंगुश्त ज़ीनहार दरख़्त

तिरे जल्वे से नख़्ल-ए-तूर बने

हैं जो बाला-ए-कोहसार दरख़्त

बेद-ए-मजनूँ को देख ओ लैला

है ये मजनूँ का यादगार दरख़्त

देख कर तुझ को भूल जाएँगे

गुल खिलाएँगे बे-बहार दरख़्त

ज़िंदगी में न मैं ने फल पाया

हो न मेरे सर-ए-मज़ार दरख़्त

फ़ाएदा भी यहाँ तो नुक़साँ है

संग खाते हैं बार-दार दरख़्त

दाग़-ए-तन खिल रहे हैं सूरत-ए-गुल

हम हैं गोया शगूफ़ा-दार दरख़्त

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