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जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है - गोया फ़क़ीर मोहम्मद कविता - Darsaal

जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है

जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है

ये कहिए लन तरानी अब कहाँ है

जो पहुँचे हाथ ज़ंजीरों को तोड़ें

गरचे पाँव अपना दरमियाँ है

चमक लाल-ए-ब-दख़्शाँ की मिटा दे

तिरे होंटों पे ऐसा रंग पाँ है

तुझे कहता हूँ सुन ओ वहशत-ए-दिल

वहाँ ले चल जहाँ वो दिल-सिताँ है

वो हों नाज़ुक-मिज़ाज ऐ हम-सफ़ीरो

रग-ए-गुल मुझ को ख़ार-ए-आशियाँ है

मुआ जाता हूँ मैं तर्ज़-ए-निगह से

तिरे लब की मसीहाई कहाँ है

बुला कर उस से दो बातें तो सुन ले

ये कहते हैं कि 'गोया' ख़ुश-बयाँ है

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