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हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है - गोया फ़क़ीर मोहम्मद कविता - Darsaal

हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है

हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है

मुज़्दा ऐ दिल कि मौत आई है

तुझ से मग़रूर की झुकी गर्दन

फिर भी इक शान-ए-किब्रियाई है

उस ने तलवार को सँभाला है

देखिए किस की मौत आई है

फिर गया जब से वो सनम ब-ख़ुदा

हम से बरगश्ता इक ख़ुदाई है

बात सीधी भी वो नहीं करता

कज-अदाई से कज-अदाई है

आप को जानता है आईना

साफ़ ये उस की ख़ुद-नुमाई है

तुम मिरे कज-कुलाह को देखो

ये भला किस में मीरज़ाई है

दिल में आता है राह-ए-चश्म से वो

ख़ूब ये राह-ए-आश्नाई है

मले हसरत से हाथ देख के हूर

ऐ परी तेरी वो कलाई है

शाना उस का है पंजा-ए-ख़ुर्शीद

वाह क्या पंजा-ए-हिनाई है

ज़ाहिदो क़ुदरत-ए-ख़ुदा देखो

बुत को भी दावा-ए-ख़ुदाई है

हाथ पहुँचा न पा-ए-क़ातिल तक

तालेओं की ये ना-रसाई है

काबे जाने से मनअ' करते हैं

क्या बुतों के ही घर ख़ुदाई है

हुस्न ने मुल्क-ए-दिल किया ताराज

हज़रत-ए-इश्क़ की दुहाई है

मुँह है 'गोया' का उस का बोसा ले

बात दुश्मन ने ये बनाई है

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