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दर्द जब जब जहाँ से गुज़रेगा - गोविन्द गुलशन कविता - Darsaal

दर्द जब जब जहाँ से गुज़रेगा

दर्द जब जब जहाँ से गुज़रेगा

क़ाफ़िला हो के जाँ से गुज़रेगा

फ़िक्र में आएगा सवाल मिरा

और जवाब उस का हाँ से गुज़रेगा

मैं तो ये सोच भी नहीं सकता

कोई शिकवा ज़बाँ से गुज़रेगा

सामने आएगा मिरा किरदार

ज़िक्र जब दास्ताँ से गुज़रेगा

फिर मुझे याद आएगा बचपन

इक ज़माना गुमाँ से गुज़रेगा

रहगुज़र है उदास मेरी तरह

जाने कब वो यहाँ से गुज़रेगा

लोग हैरत में डूब जाएँगे

जब भी वो दरमियाँ से गुज़रेगा

ये परिंदा जो क़ैद में है अभी

एक दिन आसमाँ से गुज़रेगा

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