फिर मुझे जीने की दुआ दी है
फिर मुझे जीने की दुआ दी है
या'नी फिर इक हसीं सज़ा दी है
ज़ुल्म सह कर भी हम ने ज़ालिम के
हाथ चूमे हैं और दुआ दी है
क्यूँ गिला हो कि हम को क़ुदरत ने
ये किसी जुर्म की सज़ा दी है
शुक्रिया तू ने एक ठोकर से
रूह-ए-ख़्वाबीदा इक जगा दी है
हुस्न को क्या ख़बर कि ख़ुद उस ने
शो'ला-ए-इश्क़ को हवा दी है
मौसम-ए-गुल ने आ के गुलशन में
जाने क्या आग सी लगा दी है
हम ने दाग़ों के नूर से 'मग़मूम'
रौनक़-ए-बज़्म-ए-दिल बढ़ा दी है
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