फिर एक शोला-ए-पुर-पेच-ओ-ताब भड़केगा
कि चंद तिनकों को तरतीब दे रहा हूँ मैं
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Wasi Shah
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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फ़ितरत में आदमी की है मुबहम सा एक ख़ौफ़
शब-ताब
फ़र्क़ ये है नुत्क़ के साँचे में ढल सकता नहीं
फ़क़त इक शग़्ल बेकारी है अब बादा-कशी अपनी
तुलू-ए-शब
फिर वो नज़र है इज़्न-ए-तमाशा लिए हुए
शे'र कहने का मज़ा है अब तो
नज़्म
किस को है हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद का दावा देखें
ज़बान रक़्स में है और झूमता हूँ मैं
इक छेड़ थी जफ़ाओं का तेरी गिला न था